रूठने पर मनाना मुझको
रूठने पर मनाना मुझको
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में रूठ जाती अगर,
तो मुझको मनाते थे।
मेरे पापा तुम सदा ,
मुझको पुकारते थे।
सीने से लगाकर मुझको,
मेरे बालों को सहलाते थे,
मेरे प्यारे पापा जी तुम!
मुझको बहुत याद आते हो —
जब भी कभी ,नाराज हो!
में रूठ जाती थी—
बनकर एक खिलाड़ी,
तुम मुझको हंसाते थे।।
कोई भी फरमाइश हो मेरी,
उनको तुम सदा करते थे।
शैतानियों को तुम —
नजर अंदाज करते थे मेरी।।
मेरे पापा तुम मुझको,
बहुत याद आते हो—–
सुषमा सिंह *उर्मि,,
कानपुर उ०प्र०