“रूचि”
रुचि!
एक अविस्मरणीय तोहफा
जिसे पाकर न रहता
शेष कुछ बाकी ।
सागर की असीम
गहराइयों जैसी
हृदय की गहराइयों से
उमड़ पड़ती है उमंग
जिसे पाकर
हृदय के अंतस्तल से
चाहता हूँ उसे मैं।।
रुचि!
एक अविस्मरणीय तोहफा
जिसे पाकर न रहता
शेष कुछ बाकी ।
सागर की असीम
गहराइयों जैसी
हृदय की गहराइयों से
उमड़ पड़ती है उमंग
जिसे पाकर
हृदय के अंतस्तल से
चाहता हूँ उसे मैं।।