रूक्मणी
रूक्मणी, रूक्मणी, रूक्मणी
रूक्मणी है, कान्हा का
बंशीधर का कौन है ?
जो है नटवर नागर का
वह राधा तो मौन है।।
मौन स्वीकृति मौन प्रेम
सांख्य योग कहलाता है
आत्म समर्पण प्रेम भक्ति
मीरा सम बन जाता है।।
सुख मणि ,सुख मणि,सुख मणि
सुख सागर मिल जाता है
आत्म समर्पण, प्रेम भक्ति में
आनंद कंद मिल जाता है
ज्ञान मार्ग की पराकाष्ठा
कुतर्क पर बौन है।
रूक्मणी रूक्मणी रूक्मणी
रूक्मणी है कान्हा का
कवि विजय का कौन है?
नश्वर देह अमर है आत्मा
कलिकाल तो गौण है।
है आत्म समर्पण उनको
जो आदि पुरुष मौन है।।
डॉ विजय कुमार कन्नौजे अमोदी आरंग
ज़िला रायपुर छ ग