रूको भला तब जाना
एक हसीन स्वप्न है
मेरे जीवन के फितरत में
जिंदगानी है संघर्ष के
चक्षु उड़ेल दूं तब जाना
सच यहीं हैं यहां बस निर्वाण
जाने कौन ये, वे सिर्फ स्नेह में
कोई कर्त्तव्य के लिए हैं यहां
कोई वांछा प्रबल है देते स्वं प्राण
बीति मरघट ने दी मुझे एक निमंत्रण
कहो न किसे ले जाऊं अपने साथ
पंचतत्व तो मेरी वपु है तो रूह क्यों
ले जाती तो रूह ही है बस पड़ा यह गात
विस्मृत तो लोग हो जाते हैं
ये भुवन छोड़ देने बाद
शक्ति फिर क्यों सर्व करें वो
पड़ा रहने दो ये अन्तिम कंकाल
मत ले जाओ, न ही संहार करो
अन्तिम हूं अनवरत नहीं कहो तो जाना
छोड़ न दो मुझे एक तन्हा मदफ़न / घट
कुम्भीपाक मिले या नाक इस रूह को
मिलों तो ये तप भी किसे देख कर
न कहो तो अपनत्व या फिर शून्य
यह गुरूर तो मिट जाएंगी एक दिन
तब आना तो ये मत कहना कैसे हो
रूको भला क्षण के तब जाना अन्त ओर