रुला तो न दोगे,
हंसाकर कहीं तुम रुला तो न दोगे,
कोई जख़्म फिर से नया तो न दोगे।
हसीं वादियों के यूँ सपने दिखाकर,
कहीं यार तुम भी दग़ा तो न दोगे।
हिफ़ाजत का कर के बहाना कहीं तुम,
दिया जिन्दगी का बुझा तो न दोगे।
निहां राज़ ए दिल गर बता दूँ तुम्हें तो,
नज़र से तुम अपनी गिरा तो न दोगे।
अगर याद आयी किसी दूसरे की,
मुहब्बत मेरी तुम भुला तो न दोगे।
भरोसे पे तेरे किए जो भरोसा,
उसे ख़ाक़ में तुम मिला तो न दोगे।
बड़ी मुश्किलों से सम्हाला है मैंने,
मुहब्बत की कश्ती डुबा तो न दोगे।
मुझे ख़ौफ़ यूँ बिजलियों का बताकर,
खुद अरमान दिल के जला तो न दोगे।
‘मिलन’ छोड़ जाओ मेरे हाल मुझको,
मुकद्दर का लिक्खा मिटा तो न दोगे।
———मिलन.