रुत भी आ कर बीत गई
यह रुत भी आकर बीत गई
मन की सब बतिया रीत गई
गुलमोहर पर छाई बहार
उस पर गर्मी का प्रहार
दुल्हन ले जाए धूप कहार
मौसम के संग प्रीत गई
मन की बतिया रीत गई
मेघों का मन भी डोला था
बरस गए,कुछ अनबोला था
मन भी कुछ डोला डोला था
सुंदर घड़िया बीत गई
मन की बतियां सब रीत गई
मन नदियां कूल किनारा
ढलती शामों का वो तारा
जो मन भावन था प्यारा
नज़रों से कब नींद गई
मन की सब बतिया रीत गई
बिखर गई जब पाव महावर
मन जिस पर हुआ निछावर
गीतों के सुर सब गए बिखर
मीत के संग रुत बीत गई
मन की बतिया सब रीत गई