रुचि बन गयी थी
मेरी जिंदगी वो,
मेरी आशिकी वो,
मेरी बंदगी वो,
रुचि बन गयी थी ।
अपनो से ज्यादा,
चाहा था जिसको
वो मेरी अमानत,
खुशी बन गयी थी ।।
प्यार की कली वो,
कोमल लली वो
मेरी चाहते वो
रुचि बन गयी थी ।
दिल ही दिल मे वो
मुझको भाने लगी थी
वो मेरे लवो की
हंसी बन गयी थी।।
मेरी मन्नते वो
मेरी जन्नते वो
मेरी हर खुशी वो
रुचि बन गयी थी ।
“कृष्णा” ने रब से
मांगा था जिसको
हर गम खुशी वो
रुचि बन गयी थी ।।
✍कृष्णकांत गुर्जर