रुख्सार से यूँ न खेला करे
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कह दो ज़ुल्फ़ से दूर रहे,रुख्सार से यूँ न खेला करे।
गोरे रंग पर रगड़ पड़े,चुपचाप हो कर न झेला करे।
नरम कोपल सी सखियों पर भैरों सरीखें पीछे पड़े,
गंगा जैसे पावन पावक से आंचल को न मैला करे।
जहां में यहाँ एक दूसरे के बिना है कुछ संभव नहीं,
सुना है क्या कभी पहियों बिना काम न ठेला करे।
देखा-देखी में बिगड़े झट से खड़े-खड़े ही बड़े-बड़े,
देख कर हालत लोगों की गुरु के जैसे न चेला करे।
कोई तो है जिसकी छूहन से हिल जाए मनसीरत,
मन मस्ती में कहीं डूबे नहीं ऐसी बातें न छैला करे।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)