रुख़सत हो गया मैं
दिनांक 8/5/19
जब हो गया
मैं
रुखसत दुनियां से
तब मिला
खत उसका मुझे
क्या समझूं ?
ईरादा उसका
इश्क किया या
रुख़सत किया उसने
जिन्दगी से
न जाने कैसे होते है
वे लोग
जो निगाहें फैर लेते हैं
अब कहूँ क्या मेरे दोस्त
मैं रुख़सत दुनियाँ से
हो गया
खता फिर भी करते है वे
औ आ जाते है
मातम मनाने कब्र तलक
ठान लिया है मैंने
तेरे दीदार न करूँगा
मेरे हमदम
जब तूने रुख़सत कर दिया है
मुझे दुनियां से
तब दर तेरे
रह कर क्या करूँगा ?
दामन पाक-साफ है मेरा
ये तो है फितरत मेरी
गमगीन रहने की
बस तूने
रुख़सत कर दिया
औ मैं दुनियां से चल दिया
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल