“रुको नहीं”
लहरें आती है आने दो लहरों को, ढा रही कहरें तो ढा जाने दो कहरों को !
कुछ सीखने की लालसा में अगर फँस गये बीच भंवर में , तो फँस जाने दो खुद को !
प्रलय की ये धारायें तो आती ही रहेंगी , आ रही बाधायें तो आ जाने दो बाधाओं को !
वक्त है जो अभी गुज़र वो भी जायेगा , होना पडे समर्पित अगर , तो समर्पित हो जाने दो खुद को !
ताबेदार क्यों होते हो यहाँ यूँ ही बेफज़ूल में, व्यथाएं भी आएँगी , आ जाने दो व्यथाओं को !
करना वही जो खुद को लगे सही, दुनिया का काम है कहना कह जाने दो उसको !!
सुदूर वन जैसा हो मन अपना, कुछ चला भी जाय तो जाने दो उस कुछ को !!
सपने बुने हैं जो तुमने पूरे वो भी होंगे , वक्त को बस पकड़ना कस के छूट गया जो छूट जाने दो उसको !!
..बृज