रुको तो न जाओ अभी तो बुलाया ।
गगन इस तरह से लगे झिलमिलाया,
दियों को दिलों में किसी ने जलाया ।
लगी आज कहने झड़ी आँसुओं की,
रुको तो न जाओ अभी तो बुलाया ।
हमें दुख नहीं है किसी भी सज़ा का,
सदा ने किसी की हमें है रुलाया ।
मिलेंगे जनम भर यूँ’ खिलते रहेंगे,
भ्रमर बन कली को तुम्हीं ने खिलाया ।
कभी हाल ‘अंजान’ का देख लो आ,
लगे आजकल यों, कि तुमने भुलाया ।
दीपक चौबे ‘अंजान’