रुकना हमारा काम नहीं…
हे मानव ! तू बढ़ता चल
तम को चीर बढ़ता चल
न कोई है अपना – बेगाना
तो फिर क्यों है सौ बहाना
इसी माटी से बना खिलौना है तू
इसी माटी में मिल जाना है
इस सांसारिक मोह को छोड़
निज क्षणिक खुशी को छोड़
बस निज निशाना साधे तू
उन्मुक्त गगन की ओर बढ़ चलो तू
विपदाएं आती है आने दो
तार – खजूर सा अडिग रहो
विध्नों की जय हो भी जाए
फिर भी तू प्रयास कर
अंतिम तक प्रयास कर
पेड़ सा झुक – झुक उठ
दिखा दे इस दुनिया को
कि तू भी माटी से बना शेर है
झुकना हमारा काम नहीं
रुकना हमारा काम नहीं…
कवि:- अमरेश कुमार वर्मा
पता :- बेगूसराय, बिहार