रुकना हमारा कर्म नहीं
चल दिया हूं कर्म पथ पर
मन में कुछ आस लिए हम
चित्त में कुछ टीस लिए चले
रुकना हमारा कर्म नहीं…
इस पथ पर चलने में हमे
अच्छाई बुराइयां सब मिलेंगी
थककर मन करेगा बैठने को
पर रुकना हमारा कर्म नहीं…
चल दिया हूं शिखर की ओर
तो अब पीछे क्या मुड़ना
पर मन में हार की है भय
पर रुकना हमारा कर्म नहीं …
जिस प्रकार मनुष्य लिप्सा होता
धन मिलने पे औरों की अपेक्षा करता
उसी प्रकार हम मनुष्यों को भी
रुकना हमारा कर्म नहीं…
इस पथ पर हजारों कीम आएगी
मन करेगा जग छोड़ने को भी
पर हम बिल्कुल ना झुकेंगे
रुकना हमारा कर्म नहीं…
मंजिल पाना अगर होता आसान
तो सब उच्च शिखर पर होता बैठा
संघर्ष ही सर्वोच्च होती यहां
रुकना हमारा कर्म नहीं…
लेखक:- अमरेश कुमार वर्मा