“रीत कहती है दफन के पूर्व लाश का श्रंगार कर लो”
रीत कहती हैं दफन के पूर्व ,लाश का श्रंगार कर लो, हो सके तो एक क्षण के ही लिए, आश को तुम प्यार कर लो।
मैं अकेला चल रहा था राह अपनी थी ,दर्द खुद ही सह रहा था आह अपनी थी, क्या परेशानी हुई जो साथ तुम चलने लगे याद है तुमने कहा था दोस्ती का इकरार कर लो ,
रीत कहती है दफन के पूर्व लाश का श्रंगार कर लो…..
कौन किसका साथ देता सांस तक अपनी नहीं मांगने पर जिंदगी क्या मौत तक मिलती नहीं,
सत्य और ईमान से अब आस्था उठने लगी स्वार्थमय संसार में सांस भी घुटने लगी,
अलविदा कहां जा रहा हूं द्वारा अपने बंद कर लो
रीत कहती हैं दफन के पूर्व लाश का श्रंगार कर लो।।
रीत कहती हैं दफन के पूर्व लाश का श्रंगार कर लो।।
आदिम कवि : राकेश देवडे़ बिरसावादी