रीति रिवाज
सुलेखा खुले विचारों की लडकी है । वह परम्परागत रीति-रिवाजों को आँख बंद करके नहीं मानती थी हर बात में तर्क ढूढती है और उसी के अनुसार निर्णय लेती है । एम ए करने बाद वह सामाजिक न्याय विभाग में अधिकारी हो गयी है यहाँ भी सामाजिक बुराईयों से लड़ते हुऐ विकलांग उपेक्षित बच्चे बच्चियों के लिए काम करती है । उनके विकास उन्नति की योजनाऐ बना कर बच्चों को आगे बढने को उत्साहित करती । इसी तरह बेटे बेटियों में कोई अंतर नही करना बेटियों को हर जगह आगे बढने के लिए प्रेरित करना । बच्चियों को गुड और बेड टच बताना शामिल है ।
एक दिन सुलेखा आफिस जा रही थी तभी उसे पड़ौस की संगीता की लड़की संध्या कालेज बेग ले कर जाती दिखी लेकिन वह कालेज न जा कर एक बगीचे की तरफ मुड गयी सुलेखा को संदेह हुआ वह उसके पीछे पीछे चल दी । वहाँ एक लड़का पहले से मौजूद था, चेहरे से बदमाश दिख रहा था और संध्या को डरा धमका कर अश्लील हरकत करने की कोशिश कर रहा था । तभी सुलेखा वहाँ पहुँच गयी और उस लडके तीन चार तमाचा मारने के बाद खींच कर पुलिस चौकी ले गयी । अब संध्या, सुलेखा के गले लग कर रो दी । सुलेखा ने टीन एज की अच्छी बुरी बातें उसे समझाई और आगे के लिए सतर्क रहने को कहा ।
जब सुलेखा की शादी की बात चली तब उसने लडके वालो को शादी की कई रीतियों में बदलाव करने को कहा और ऐसे शादी का प्रस्ताव रखा जिससे दोनों पक्षों को सहूलियत हो जैसे : ” रात भर की शादी के बजाए दिन में शादी की जाए इसके पीछे उसका तर्क था कि जब भारत पर मुगलों का शासन था तब वह दिन में होने वाली शादीयों में विघ्न डालते थे लेकिन आज ऐसा नहीं है और रात की शादी में बिजली की बचत रात भर जागने को झंझट से भी मुक्ति मिलेगी । इसी तरह बैंड आतिशबाजी की फिजूल खर्ची को भी रोकना है। खाने पीने के मामले में बहुत ज्यादा पकवान नहीं बनवा कर कम बनवाए और खाने बरवादी रोकी जाऐ जो खाना बचे उसे गरीबों में बाँट दिया जाऐ । इसी तरह जब उससे गृहप्रवेश के समय लोटे में भरे चावल को पैर से गिराने को कहा तब उसने लोटे और चावल को पैर से गिराने की जगह बैठ कर हाथ से लुडकाया । उसने कहा : ” चावल अन्न हैं उसका सम्मान किया जाना चाहिए। ” इस तरह सब सुलेखा के विचारों से सहमत हुऐ सहमति से सम्मानजनक तरीके से शादी सम्पन्न हुई