रीति रही मैं भी
बस यूँ ही***
बहुत ही मुश्किल मगर
प्यार में हर दर्द
को सीती रही हूँ मैं…..
कभी तो सज़दे किये उनको
कभी शिकायत भी करी पूरी
मगर खुद मे ही जीती रही हूँ मैं ……
किस्मत के लिखे को अपने क्यो
चली थी मैं बस मिटाने को..
सोचा था कि दामन भर सकूँ
उसका अपने प्यार से रीता
मग़र रीता रहा वो भी
और रीती रही “मंजु”……..