रिहाई
तुम व्यापक दृष्टि से देखो
सब कुछ नहीं होतीं
हाथों की चन्द लकीरें
मत बने रहो तुम
लकीर के फ़क़ीर
संकुचित दृष्टि को फैलाओ
नज़रों से देखना बन्द करो
देखने के लिए विज़न लाओ
विज़न के लिए नहीं पड़ती
आँखों की ज़रूरत
विज़न से हस्सास दिल की
नज़र आएगी परत दर परत
दिखेंगी उस पर लिखी इबारतें
जो ख़ुद गवाह होंगी
निशानी होंगी मुहब्बत की
नहीं देना होगा कोई सुबूत
तुम्हारा विज़न ही काफी होगा
मेरी रिहाई के लिए।
Abul Hashim Khan
November 01, 2021
11:00 PM