रिश्तों में बढ रही है दुरियाँ
रिशतों की मिठास अब
जीवन में कम हो रही है, क्या करे।
रोज बढ़ती जा रही अपने ही
रिशतों में खाईयाँ, क्या करे।
अपनो के बीच में भी आजकल
लोग रहने लगे है तनहाई में क्या करे।
दिल का हाल किस्से बताएँ अपना
जब सुनने वाले अपने, अपने न रहे ।
अपनों से मिला दर्द इतना गहरा था
की निकल नहीं पाएँ हम क्या करे।
वरना नाज हमें अपनी तैराकी पर
किसी तरह से कम न था क्या करे।
हार जाते है हम हमेशा लड़ाई
जब अपनों से होती है क्या करे।
वरना दूसरा में हमें हराने का
कहाँ दम था पर अब क्या करे।
रिश्तों में अब पहले वाली
वो बात रह न गई क्या करे।
~ अनामिका