रिश्तों के ताने बाने
न जाने इस मन में कितने
अनसुलझे ताने बाने है।
गांठ लगी जो रिश्तों में
वो सभी सिरे सुलझाने है।
स्नेह तन्तु जो फिर जोड़े
वो युक्ति अभी न पायी है।
कैसे गिरह खुलेगी मन की
पीड़ा मन भर आयी है ।
मैंने जीवन के तन्तु सभी
थे साथ पिरोने चाहे ।
किन्तु प्रयास रहा निष्फल
है प्रथक प्रथक सब राहें ।
बुनकर मुझको युक्ति बता
मैं पुनः सिरे सब जोड़ू ।
जीवन बसन सम सुभग बने
मिथक सभी मन के तोड़ूं ।