रिश्तों के जज्बात
ऐसा भी होता है या नहीं
पर मेरे साथ तो ऐसा ही हुआ है,
आपको विश्वास हो या न हो
क्या फर्क पड़ता है।
आखिर ये कैसा रिश्ता है
किस जन्म का संबंध है,
संबंध है भी या नहीं
ये मैं कह भी नहीं सकता।
क्योंकि पूर्वजन्म के रिश्तों का
मैं न हूं कोई ज्ञाता।
पर आज रिश्ता है हमारा उससे
जिसे देखा तक नहीं
तो जान पहचान का तो प्रश्न ही नहीं।
फिर भी वो जानी पहचानी लगती है
इतनी छोटी होकर भी
नानी दादी सी लगती है।
वो चाहे जितनी दूर है
हम आमने सामने मिलेंगे या नहीं
ये तो कहना मुश्किल है।
पर वो आसपास है
घर के आंगन में फुदकती लगती है,
हंसाती और रुलाती है,
बेवजह सिर खाती है।
अपने छोटे होने का लाभ उठाने का
मौका भी वो कहाँ छोड़ती है,
अपने अधिकारों का जी भरकर प्रयोग करती है।
हमसे अपने रिश्ते बताती है
जाने क्या क्या बकती रहती है?
क्या सच क्या झूठ ये तो
वो भी नहीं जानती है।
पर मौके को लपकना खूब जानती है।
अच्छा ही तो है, कम से कम
मैं भी कुछ तो जिम्मेदार हो गया,
अधिकार और कर्तव्य का मतलब समझने लगा,
सच कहूं तो मैं उससे डरता भी हूँ
क्योंकि मैं उसे अपने अंतर्मन से
शायद सदियों से जानता हूँ,
अथवा पवित्र रिश्तों के जज्बात
बेहतर ढंग से पढ़ना जानता हूँ,
यह और बात है कि मैं
भूत भविष्य के बजाय में
वर्तमान में जीता हूँ
और बहुत खुश रहता हूँ,
उसके सुखद भविष्य की कामना के साथ
आत्मीय भाव से शुभकामनाओं संग
अनंत आशीष भी देता हूँ।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश