रिश्तों की मर्यादा
रिश्तों की मर्यादा
प्यार का रंग रंगीला…….
ना फीका, ना सजीला ……..
हर रिश्ते की होती है अपनी मर्यादा,
हर कोई करता है अपने आप से सच्चा रिश्ता निभाने का वादा।
पर क्या सोचा है, क्यों होती है, हर रिश्ते की मर्यादा ?
खूबसूरत, पवित्र धागे से बंधा होता है, इतना नाजुक होता है कि जरा सी चोट लग जाए तो टूट जाता है प्रेम रूपी धागा।
सदा रिश्तों में मिठास घोले,
अपनों से बड़ों से सदा प्रेम से बोले🙏🏻
झुककर करें सदा प्रणाम
ना हो कभी ऐसा कि बच्चे करें विश्राम और बड़े करें तुम्हारे सभी काम ।।
संग सभी के हँसकर बोलो,
मन-मस्तिष्क में अमृत घोलो।
खुद को भी मिलेगा आराम ।
हर रिश्ते को न तराजू से तोलो ।
बोलने से पहले जरा, सम्भल कर बोलो।
रखो सब का ख्याल,
जी हाँ , रखो सब का ख्याल,
पर जब हो आप का सवाल तो ,
ना मचाए कोई रिश्ता आकर उसमें बवाल……….
सुना है तलवार का जख़्म बहुत गहरा होता है, पर समय के साथ घाव भर जाता है।
जुबान की खट्टास से हर रिश्ता, समय से पहले ही ढ़ल जाता है।
पत्नी जब मायके से आती है।
तब वह पिया संग हर रीत निभाती है , उसकी खातिर अपना पूरा संसार पीछे छोड़ आती है।
वे अपनी हर खुशी, हर ख्वाब की पूर्ति करना ससुराल में ही चाहती है।
क्यों ना ? ब्याहकर बहू नहीं, बेटी ही ले जाई जाए।
रिश्ते की मर्यादा दोनों ही तरफ से निभाई जाए।
रिश्तों में सदा उतार-चढ़ाव आते हैं पर कुछ लोग उस वक्त रिश्ते कटु वचन सुना कर ही निभाते हैं।
कुछ रिश्ते ऊपर से तो अपनापन दिखलाते हैं पर भीतर से साँप से भी अधिक जहर उगल जाते हैं।
बिरादरी के सामने सभी अपने मधुर संबंध दिखलाते हैं , पर मेहमानों के जाते ही सभी रिश्ते अपने -अपने कमरों तक सिमट जाते हैं ।
हम आज आप को इतिहास में ले जाते हैं और बीते समय के लोगों द्वारा निभाई गई रिश्तों की मर्यादा सुनाते हैं।
साथ ही साथ अतीत और वर्तमान के रिश्तों में फर्क भी दिखलाते हैं ।
रिश्ता निभाए भरत जैसा,
जिनके लिए प्रेम से बड़ा नहीं था पैसा।।
आजकल अखबारों में अक्सर ऐसे किस्से आते हैं कि चंद पैसों की खातिर भाई ही भाई का गला दबाते हैं ।
सावित्री ने ऐसा पतिधर्म निभाया कि यमराज ने भी उसकी तपस्या के समक्ष उसका पति लौटाया।
कुछ पति हो या पत्नी अपने स्वार्थ की खातिर एक घर होते हुए भी दूसरा घर बसाते है, अपने परिवार को धोखा देकर नया आशियाना बसाते हैं ।
स्वामी विवेकानंद जी ने ऐसे बेटे की भूमिका निभाई ।
जग को सहनशीलता,परोपकार, प्रेम, दया, भ्रातृत्व प्रेम की सीख हैं पढ़ाई ।
पर आजकल तो माता -पिता या तो अलग घर में जीवन बिताते है या फिर
अनेकों के माता-पिता वृद्धआश्रम में पाए जाते है ।
माँ सती ने पति के अनादर की ऐसी गाथा सुनाई।
खुद भस्म होकर पति के सम्मान की महिमा बढ़ाई।
आजकल तो हर जगह चलती है, हर रिश्ते की बुराई।
क्या कभी सोचा है कि हमारे इन रिश्तों में इतनी दूरी कैसे आई?
क्योंकि हमने सब में गलतियाँ ही पाई ।
ना ढूंढी कभी किसी रिश्ते में अच्छाई।
रिश्तों की मर्यादा हम सब से शुरू होती हैं ।
यदि हम करेंगे भलाई तो लौट कर भी आएगी अच्छाई।
सधन्यवाद
रजनी कपूर