रिश्तों की बेकद्री ने
रिश्तों की बेकद्री ने
रिश्तों की बेकद्री ने , किस मोड़ पर ला खड़ा किया है हमें
बदलते मौसम की तरह , रिश्ते बदलने लगे हैं लोग
अविश्वास और आकांक्षाओं की परत ने दिलों में बना ली है जगह
अपनों को भो अपना कहने में अब ,डरने लगे हैं लोग
एक दौर था जब रिश्तों को निभाने का दिलों में होता था जूनून
एक ये दौर है जहां खुद को ही संभालने में हैं मशगूल
क्यूं कर ताक पर रख दी है इंसानियत हमने
चाहकर भी दूसरों के गम को अपना कहने से डरने लगे हैं लोग