रिश्तों की बंदिशों में।
अपनी करूं या करूं मैं अपने खुदा की।
यही सोचकर इतनी मैने जिन्दगी बिता दी।।1।।
गुरबती देखकर आज ये नजरें भर आयी।
फिर मां ने बच्चे को अपनी रोटी खिला दी।।2।।
रिश्तों की बंदिशों में खुद को भुला दिया।
आज दोस्तों ने यूं ही बे वजह ही पिला दी।।3।।
तुम दूर क्या गए जिंदगी समझ में आई।
यादों ने तेरी मुझको आशिकी सिखा दी।।4।।
तुम मेहमां बनके आए शुक्रिया तुम्हारा।
चांद तारों ने घर पर मेरे रोशनी सजा दी।।5।।
वादा ना करना जानें मुस्तकबिल क्या हो।
खुदा ही जानें जिसने ये जिंदगी अता की।।6।।
गम ही होता इश्क में तो चाहत ना होती।
ये झूठे वशवशे है इनको ये किसने हवा दी।।7।।
खुद की हस्ती उसने खुदसे ही मिटा दी।
यूं पुरखों की दौलत उसने नशे में लूटा दी।।8।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ