रिश्तों की कद़र होती है अब भी अमीरों में।
गज़ल
221…….1222……221……..1222
दम तोड़ चुके रिश्ते औ’र प्यार अमीरों में।
रिश्तों की कदर होती है अब भी गरीबों में।
जीवन में रहे उलझे आसान सवालों में,
हल सारे समाये हैं वेदों की रिचाओं में।
दुनियाँ में नजर फेरे तुमसे जो बशर कोई,
तुम खुदको रखो यारो,ईश्वर की निगाहों में।
कब कर्म सफल होता बिन भाग्य के जीवन में,
कितना भी हो बल संचित इंशा की भुजाओं में,
जिस ओर हवा बहती उस ओर सरल चलना,
कितना है कठिन टिकना विपरीत हवाओं में,
बस प्रेम किया दैहिक दैविक भी जरूरी था,
ताउम्र रहे उलझे प्रेमी की अदाओं में,
……✍️ प्रेमी