रिश्तों की अहमियत
घर तो हैं अब घर नहीं,
सिर्फ ईंटों के मकान हुए।
मिट रहे अब रिश्ते सभी,
धन ही बस पहचान हुए।
मोल-भाव शुरू हुआ है,
ये रिश्ते भी दुकान हुए।
अहमियत कोई न समझे,
सब के सब नादान हुए।
रिश्तों के बल पर ही तो,
लोग जग में महान हुए।
विनय कुशवाहा ‘विश्वासी’
देवरिया (उत्तर प्रदेश)