रिश्तों का बाज़ार
रिश्तों का बाजार
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रुक गया जब गया मै रिश्तों के बाजार में,
बिक रहे थे सभी रिश्ते खुले आम बाज़ार में।
दुकानदार से पूछा,क्या भाव इन रिश्तो का,
दुकानदार बोला,अलग अलग भाव है रिश्तों का,
बेटे का या बाप का बहन का या भाई का,
इंसानियत का या आज की हैवानियत का,
मां का,या सेविका का या किसी प्रेमिका,
पति का या पत्नि का या गर्ल्स फ्रेंड का।
बाबूजी कुछ तो बोलिए,कौन सा रिश्ता चाहिए,
चुपचाप क्यो खड़े हो,रिश्ता खरीदो और जाइए।
मैने डरते हुए दुकानदार से कहां,सच्चे दोस्त का,
दुकानदार रोते हुये मेरी तरफ मुखातिब हुए बोला।
भाई साहब,यहां सब प्रकार के रिश्ते बिकते है,
पर दोस्त का रिश्ता इस बाजार में नही बिकता।
और जिस दिन ये रिश्ता बाजार में बिक जायेगा,
उस दिन ये रिश्तों का सारा संसार उजड़ जायेगा।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम