रिश्ते
रिश्ते
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ऐसे लगता है
हम सब थक हार गये हैं,
शायद इसीलिए आज अब
रिश्तों में नमी नहीं है।
जब खून के रिश्तों में
बिखराव आम बात हो गयी है
तब मानवीय और भावनात्मक रिश्तों की
कहानी बेगानी हो गयी है।
खून के रिश्ते भी अब
शर्मसार करने लगे हैं,
अपने ही अपनों के अब
दुश्मनों से लगने लगे हैं।
अब तो हर रिश्ते से
विश्वास उठता जा रहा है,
हर रिश्ता अब तो जैसे
अनुबंध पर ही चल रहा है।
कागज की नाव से अब
रिश्ते ढोये जा रहे हैं,
सारे नाते रिश्ते हमारे
मौत के मुंँह में समा रहे हैं।
लगता है अब जल्द ही
इतिहास बन जायेंगे रिश्ते,
या फिर हो जायेंगे हमारे
सारे अनुबंधित रिश्ते।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.
8115285921
©मौलिक, स्वरचित