रिश्ते
ज़िंदगी के सफर में कुछ रिश्ते अधूरे ही रहे ,
कुछ टूटे , टूटकर बिखरे से होकर रह गए ,
रिश्ते जिन पर हमें नाज़ था , जिनका थे हम
दम भरते ,
वसूक़ की अंधी गली में गुम़शुदा होकर रह गए ,
कुछ हमारी अना का कुसूर था कुछ उनका ग़ुरुर ,
कुछ थी अपनों की साज़िश , कुछ गैरों की फ़ितरत ,
कुछ थे बदले हालात , कुछ बदली नीयत की थी असलियत ,
बदलते रिश्तो की हक़ीक़त जब तक हम
समझ पाते ,
गर्दिश- ए- दौराँ ने हमें समझा दिया के दिल बदलते ही रिश्ते भी हैं बदल जाते ,