रिश्ते
आदिमानव ने जब खाने के साथ खेलना, पीने के साथ पकाना सीखा तब शायद उसके भोजन के अवशेष के साथ कुत्ते ने अपना गहरा रिश्ता बना लिया । उसे आदिम से डर तो लगता था किन्तु भोजन की ललक उसे आदिम से रिश्ता बनाने के लिऐ मजबूर होना पड़ा। आदिम को भी पकने वाले भोजन के अवशेष क़ा निस्तारण नही करना पड़ता था । एक- दूसरे की मदद या उनके अपने-अपने स्वार्थ ने दोनो को रिश्ते बनाने पर मजबूर करती थी । आज के समय में मनुष्य जो भी रिश्ते बनाते उनमे उनका स्वार्थ निहित होना यथा सत्य है । मनुष्य अपनी अपेक्षाओ क़ा जाल अपने समांतर के समक्ष फेंकता है, य़े सोचकर की शायद भविष्य में इस जाल में उच्चतम न सही निम्नतम स्वार्थ तो आकर फंसेंगा जरूर । सब कोशिश में रहते है की सामने वाले को को कितना आकर्षित कर सकते है ताकि उनमे लगने वाला गुरुत्वाकर्षण बल नीचे न जाकर सामने लगे । मनुष्य क़ा गुरुत्वाकर्षण बल तब तक सही कार्य करता जब तक गुरुत्वाकर्षण उसकी तरफ रहता है, अन्यथा की स्थिति में क्रिया-प्रतिक्रिया क़ा नियम लागू कर दिया जाता है । कभी गर दुःख नामक नया पाठ आता है तो य़े रिश्ते वाला आकर्षण रखने वाले एक शब्द के पीछे पूर्णविराम लगा कर इति श्री कर लेते है । वैसे रिश्ते नामक य़े शीर्षक इतना भी छोटा नही है फिर भी चंद शब्दों में समझाने के कोशिश है क्योंकि अगर रिश्ते को विस्तार पूर्वक और समझने योग्य लिखता तो आप और मैं दोनो की आंखे नम होती है ।…
विकास सैनी …
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