रिश्ते
रिश्ते बनते हैं बिगड़ते हैं।
कुछ नए रिश्ते बनते हैं कुछ पुराने रिश्ते बिगड़ते हैं।
कुछ सच्चे कुछ अच्छे रिश्ते बनते हैं।
कुछ पक्के तो कुछ कच्चे रिश्ते बनते हैं।
कुछ दिखावे के तो कुछ भुलावे के।
कुछ खुदगर्ज़ी के तो कुछ झूठी हम़दर्दी के।
कुछ ठहराव के तो कुछ भटकाव के।
कुछ सम्मान के तो कुछ झूठी शान के।
कुछ गोटी फिट करने के तो कुछ उल्लू सीधा करने के।
कुछ पीने पिलाने के कुछ दूसरों को नीचा दिखाने के।
कुछ मज़हबी तो कुछ सिय़ासी तो कुछ आतंकी मंस़ूबों के।
कुछ प्यार के तो कुछ व्यापार के।
कुछ जोड़ तोड़ के तो कुछ गठजोड़ के।
कुछ म़ेहरबानी के कुछ कुर्ब़ानी के।
कुछ दौल़त के कुछ श़ोहरत के।
हर रिश्ते की अलग कहानी है।
जो रिश्ते संज़ीदा नही वो बेमानी है।