रिश्ते
होते हैं
बड़े नाजुक रिश्ते
समेटो उन्हें
दामन में
सरक गयी
अगर झोली
बिखर जाते
रेत से
देता मौला
मोहब्बत
बेपनह
समेट सको
जितना समेटो
पकड़ो झोली
मजबूती से
बिखर न जाये
रेत से
पकड़ो दामन
माँ बाप का
हैं वो
सरताज
जिन्दगी में
न चाहेंगे
बुरा वो
करो गुस्ताफी
तुम कितनी भी
पकड़ों
मजबूती से उन्हें
गये तो वो
फिर न आयेंगे
मांगो
दुआ इतनी
पड़ जाये
कम दामन
दाता है वो
वर दाता है
ले लो
दुआ बेपनह
क्या मालूम
फिर
कभी वो
सामने आये न
है
जिन्दगी
इतनी
एक रात
एक दिन
जितनी
कर लो
अपनो से
प्यार इतना
कम पड़
दामन ये
कब कहाँ कौन
गुम हो जाये
रह जायेंगी
फिर बस याद
वो भी कभी
आये न
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल