रिश्ते……..
गुमान था बहुत,
अरमान था बहुत।
अक्सर बातें होती थीं,
कुछ अनकही यादें होती थीं।
सोच यह कि काम आयेंगे एक-दूजे के,
साथ नहीं छोड़ेंगे एक-दूजे के।
स्वप्न ऐसा कि देखने को दिल चाहे,
मन ऐसा कि विचरना हरपल चाहे।
सब कुछ अनुकूल था,
स्वप्न-सा न प्रतिकूल था।
फिर एक पल आया,बारंबार आया,
दिल को भरमाया,कुछ तड़पाया।
सोच वैसे पुरानी थी,
पर अब नई कहानी थी।
भ्रम का संसार बिखरा था,
न कुछ निखरा-निखरा था।
सोच रहा हूं अब यही,
क्या रिश्ते होते हैं ऐसे ही ?
बिखराव लाते हैं ऐसे ही ?
बिखर जाते हैं ऐसे ही ?
सोचता हूं शायद कुछ बदल जाता,
सोच उनकी तरह अपना हो जाता।