रिश्ते
वो बड़े आराम से मोहब्बत का हिजाब ओढ़े हैं
जरा हाँ मे हाँ न मिलाई तो हिजाब मे मुँह मोडे हैं
लोग हम को एहसानों का हिसाब गिनाते रहे
पूछ दिया एहसानों का हिसाब अब नज़रे मोड़े हैं
जो हमको अदब सिखाते थे कभी
आज वो खुद अदब का रास्ता छोडे हैं
जिनको मेरे गुनेहगार होने का भ्रम था
मेरे नाम-ए-आमाल ने वो भ्रम तोडे हैं
इस इश्क़ ने जाने कितनों को तन्हा किया हैं
हिज्र की दीवार पर आशिक़ों ने सर फोड़े हैं
सहज ही नही मिलता कोई भी रिश्ता जहाँ में
जन्नत मे बैठ खुदा ने ये इंसानी रिश्ते जोडे हैं
©️अक्षय दुबे ‘सहज’
ग्वालियर म.प्र