रिश्ते तो अब आम हो गये
रिश्ते में जो भी अपने थे, देखो, अब सब आम हो गये,
कहाँ जानते लोग हकीकत, हमीं यहाँ बदनाम हो गये l
मैने वह ही चादर ओढ़ी, जिसमें अपने पाँव समायें,
चादर कर दी मैली मेरी, बोलो कैसे मन को भायें ?
कर्जदार हैं वे औरों के, लेकिन घर में दाम हो गये,
कहाँ जानते लोग हकीकत, हमीं यहाँ बदनाम हो गये l
जब तक सुख सुविधायें बाँटीं, लोग जुड़े हम से ही आ कर,
आज दिवाला निकल गया तो, वही पा रहे सुख अब जा कर l
जो निर्धन थे, वे कुवेर हैं,श्रद्धा के वे धाम हो गये,
कहाँ जानते लोग हकीकत, हमीं यहाँ बदनाम हो गये l
जिसने साथ दिया उसको ही, धक्का देकर आगे आये,
हाँ में हाँ ही सदा मिला कर, उल्लू सीधा वे कर पाये l
चरण वन्दना के ही बल पर,अब तो वे श्रीराम हो गये,
कहाँ जानते लोग हकीकत, हमीं यहाँ बदनाम हो गये l