रिश्ते कैसे कैसे
रिश्ते कैसे कैसे*
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देव प्रबोधिनी एकादशी का दिन था। दुल्हन की विदाई का माहौल था।
बारी बारी से केतिका गले मिल रही थी। उसका दुल्हन का श्रृंगार भी छलकते आंसुओं से निकलता जा रहा था।
इकलौती सन्तान थी वो कृष्णानंद जी की।
परन्तु सारा मुहल्ला उसका अपना था।सभी की प्यारी थी वो।पूरा मुहल्ला उसे विदा करने के लिये मुस्तैद खड़ा था। सभी की आंख में उसका स्नेह निर्मल जल बनकर बह रहा था। और बाजे पर पुरानी फिल्मी धुन … खुशी खुशी कर दो विदा…. की स्वर लहरी वातावरण को और बोझिल बना रही थी। सबसे मिलने के बाद कार में बैठते बैठते केतिका सुधबुध खोती वापस अपने आंगन में दौड़ पड़ी। अवाक से कृष्णानंद जी उसे देखते रहे। वो सीधी आंगन में लगे कचनार के पेड़ के पास गई और लिपट कर रोती रही। जैसे कोई संवाद चल रहा हो। कचनार भी गमगीन होकर मध्दिम मध्दिम हिल रहा था।
जैसे कोई केतिका से बोल रहा हो।
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मेरी बहना साथ रही तू अब ससुराल को जायेगी।
में कचनार यही रहूंगा क्या राखी लेकर आएगी।
इतने दिन तक तुमने पाला पानी पिला2कर के।
अब जाती हो बहना क्यों मुझको रुला2करके।
आज प्यार से मुझको गले लगाकर जा बहना।
तेरी याद में अब मुझको पडा रहेगा यहां रहना।
चिंता मत कर प्यारे भाई याद मुझे भी आएगी।
मेरा भी यह हलक सूखेगा जब भी आंधी आएगी।
पर भैया बाबुल अम्मा को छाँव तुम्हें ही देना है।
कभी कभी लहराकर के याद मुझे कर लेना है।
कैसे भूलूंगी तेरी छैया में इतने दिन साथ रही।
पर नही मिलूँ सपनो में भाई होगी ऐसी रात नही।
तुम से मिलकर मन की बाते सब कह लेती थी।
बदले में मैं सगे भाई को तुममें अनुभव कर लेती थी।
कब मेरा बचपन बीता कब तेरी छांव में हुई बड़ी।
आज छोड़ कर जाऊं कैसी दुविधा यह आन पड़ी।
जब जब हवा चलेगी भैया मुझको याद बहुत आएगी
बस तुझसे मैं मिल न् सकूँगी फरियाद हवा ही लाएगी।
मेरे बिन भैया तुम को बिन पानी भी जीना है।
जब तक मेरी सांसे है तब तक नही मुरझाना है।
मां बाबुल को सौंप रही हूं वचन तुम्हे देना होगा।
इनकी हर पीड़ा को तुझकी ही हरना होगा।
…… और पिताजी ने जैसे ही कंधे पर हाथ रखा।केतिका चीख पड़ी लिपट गई कटी लता की डाली सी। बड़ी मुश्किल से उसे कार में बिठाया। कार जा रही थी ।मुहल्ला सन्न । सब लौटने लगे । रिश्ते सब रिसते जा रहे थे। केतिका अब भी मुड़ मुड़ कर कचनार को देखे जा रही थी………
कलम घिसाई
****** मधुसूदन गौतम******