रिश्ता पैसों का
” बाबू जी मुझे रिटायर हुए तीन साल हो गये मेरी पेंशन अभी तक नही बनी बाबू जी बडी परेशानी में हूँ।”
रामलाल हाथ जोड़ कर पेन्शन प्रकरण डील करने बाबू हरीश के आगे गिडगिडा रहा था।
लेकिन बाबू उसकी तरफ ध्यान नही दे रहा था। जिनसे पैसों के लेनदेन की बात हो गयी थी उनके कैस निपटा कर कमरे से बाहर आ गया ।
रामलाल असहाय सा देखता रहा ।
आखिर वह बड़े अधिकारी के पास जाने लगा लेकिन उसे रोक दिया ।
रामलाल दरवाजे के पास खड़ा हो गया और पेंशन अधिकारी दिनेश के आने पर रोते हुए पूरी बात बताई ।
अधिकारी ने दिन भर की कमाई में से तीन हजार रामलाल को देते हुए कहा :
” कल यह पैसे बाबू को दे देना काम हो जाऐगा ।”
रामलाल उसके पैरों पर गिर गया और बोला :
” माईबाप मैं आपका अहसास जिन्दगी भर नही भूलूंगा। ”
रामलाल चला गया और अगले दिन हरीश ने उसका काम कर दिया वह यह समझ रहा था रामलाल के पास पैसे कहाँ से आए ।
हरीश अपने साथी से कह रहा था :
” अगर वह रह किसी से रिश्ता बना कर चलेगा तो नीचे से ऊपर तक चैन को ही हिस्सा नहीं मिलेगा और कल उसे ही इस सीट से हटा दिया जाएगा फिर हर कोई बिना पैसों के काम करवाने के लिए ऊपर का दबाव डालेगा , आखिर आफिस की परम्परा को भी तो बनाएं रखना
है ।”
लेकिन रामलाल यह नहीं समझ पाया । उसकी निगाह में तो पेंशन अधिकारी दिनेश भगवान था , जिसका हरीश पर कोई असर नही पडना था ।
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल