रिश्ता थोड़ा सस्ता।
रिश्ते वाले आते है,
आ कर देखते हैं रिश्ता,
अपनी-अपनी नजरों से,
पहन कर एक करिश्माई चश्मा।
खोजती उनकी निगाहें उनको,
दिल में कर ले जो तुरंत चश्पा,
सूंँघते घर के दिवरो को,
परखते कितना मिलेगा खर्चा।
पैनी नजरें चुभाते बातों में,
चूसने लगते दहेज़ का हिस्सा,
जोड़ते रिश्ते धन और दौलत से,
कहलाते है रिश्तेदार बड़े ।
शिक्षा तब ही बनती भिक्षा,
संस्कार सम्मान भूलते रिश्ते,
झूठ का पर्दा लालच ही बुनता,
तय होता रिश्ता थोड़ा सस्ता।
रचनाकार-
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर (उoप्रo) ।