*रिवाज : आठ शेर*
रिवाज : आठ शेर
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(1)
रिवाजों में बसी है याद ,पुरखों के जमाने की
रिवाजों से पता चलता है ,क्या इतिहास था अपना
(2)
पराए घर से आई हैं, मगर हमसे कहीं ज्यादा
हमारे घर की रस्में, सास-बहुऍं ये समझती हैं
(3)
अगर सारे रिवाजों को ,लगा दी आग तुमने तो
रिवाजों की जरूरत फिर भी होगी, तुम बनाओगे
(4)
शुरू जब भी हुए होंगे, तो होंगे खूबसूरत ही
रिवाजों को बड़े अच्छे दिमागों ने बनाया था
(5)
रिवाजों को हमें जीवन में अपनाना तो है लेकिन
अगर ये पैर की बेड़ी हैं तो फिर छोड़ना भी है
(6)
रिवाजों में रखा क्या है, निभे तो तुम निभा लेना
ये वरना खत्म होने के लिए ही रोज बनते हैं
(7)
रिवाजों में नियम जोड़ें ,चलो यह आज ही से हम
हमें हर वक्त हँसना है, हमें हर वक्त मुस्काना
(8)
मधुर मुस्कान से तुमने मुझे, मैने तुम्हें देखा
रिवाजों में रखा क्या है, चलो लो हो गई शादी
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा ,रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451