*रिमझिम-रिमझिम बूॅंदें बरसीं, गाते मेघ-मल्हार (गीत)*
रिमझिम-रिमझिम बूॅंदें बरसीं, गाते मेघ-मल्हार (गीत)
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रिमझिम-रिमझिम बूॅंदें बरसीं, गाते मेघ-मल्हार
(1)
दिन में लगता रात हो गई, पवन मचाता शोर है
काले-काले बादल नभ पर, हरियाली चहुॅं ओर है
मन के भीतर से आती है, नर्तन-भरी पुकार
(2)
झूला झूल रहा मन पैंगें, नभ को छू जाती हैं
सुखद-प्रेम के गीत हवाऍं, हौले से गाती हैं
शीतल-मंद फुहार मिल रहा, सब जग को उपहार
(3)
भरे हुए हैं सभी सरोवर, नदियों की जलधारा
रौद्र-रूप पर्वत का देखा, वर्षा-जल के द्वारा
नजर आ रहा निराकार का, सृष्टि -भाव साकार
रिमझिम-रिमझिम बूॅंदें बरसीं, गाते मेघ-मल्हार
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451