राह /राहें
विषय राह/राहें
राहें की पगडंडी पर चला
जो मुझे प्यारे मिलने चला
कांटे होंगे ,होंगे संघर्ष पर,
फिर भी हटे पीछे क्यो भला।
बनाए आसान मुश्किलों को
सजाएं आसमां के परिंदो से
होगी सफलता की उड़ान
घबराना नही बिखरी अटकलों से।
ऊंचे ऊंचे बेजोड़ पर्वत होंगे
नीचे बहती नदी जरूर होंगे
वो समंदर भी खुश होगा
जब यह मिलने के आतुर होंगे।
होंगे विरोधियों का राहे पर,
उमड़ा है अजीब सैलाब ,
दुःखी न करना मन राही
आज नही तो कल जवाब
राही ,राहे पर एक मोड़ होगा
खतरों से सलामत का बेजोड़
होगा
राहे कच्ची समझ के रुकना नही
साहिलों में संकेतो का रोड़ होगा।
यह है जिंदगी की खुशभरी अपनो
के अपनापन में बहती है राहे ,
झरते पत्ते है डाल से विलख
बसन्त में उड़ती हुई धूल हवाएं ।
बिछती राहें पर पलकों में
कई सुनहरे ख्वाब होंगे
जिंदगी रोशन लिए खड़ी
चकाचोंध में राह पर माहताब होंगे
सुख दुःख के दो पहिये ,,
राहों पर आगे चलते जाएंगे
जीवन है धूप छाव का ताल
कहीं रुकना नही उम्र ढलते जाएंगे ।
✍प्रवीण शर्मा ताल
स्वरचित मौलिक रचना
मोबाइल नम्बर 9165996865