राह न की
हमने उस बेवफ़ा से राह न की
तड़पे ताउम्र, उसकी चाह न की
दर्द की रेत में चले मीलों
फूट छाले गए तो आह न की
हम-सा हमदर्द, हमनवा न मिला
आह! क्यूँ तुमने फिर निबाह न की
जाँ भी तुम पर निसार की हमने
हाय! तुमने मगर निगाह न की
थे गनहगार दोस्तो! हम भी
तुमने ही ज़िन्दगी तबाह न की