राह के कंकड़ अंधेरे धुंध सब छटती रहे।
ग़ज़ल
2122/2122/2122/212
राह के कंकड़ अंधेरे धुंध सब छटती रहे।
जिंदगी ऐसे ही हौले – हौले तू कटती रहे।
कोई भी सरकार या नेता हो सब ये चाहते,
जाति धर्मों में ये जनता बस यूं ही बटती रहे।
भर लिए अपने खजाने, लूटकर के देश को,
मुफलिसों की जिंदगी खपती रहे खटती रहे।
बन रहे हैं वो मसीहा इक तमन्ना दिल में है,
देश की आवाम उनका नाम बस रटती रहे।
हादसों में मर रहे हैं लोग पर वो सोचते,
देश की आबादी यूं ही कुछ न कुछ घटती रहे।
दुश्मनों की फौज हो पर सामने फौलाद बन,
देश की जांबाज सेना सामने डरती रहे।
अब कहां लैला व मजनूं प्यार के किस्से सुनो,
सोचता ‘प्रेमी’ न जब तक दिल भरे पटती रहे।
………✍️ सत्य कुमार प्रेमी