राहे इश्क़
ये जो मेरे रुख पे जमाल है, तेरी आशिकी का कमाल है
यही तो हक़ीक़त ए इश्क़ है, यही बंदगी की मिसाल है
जो सलीब ए इश्क़ पे चढ़ गए, तो ये दिल मैं केसा मलाल है
रहे इश्क़ मैं जो क़दम रखा, तो पलटना किसकी मजाल है
तेरी बारगाह मैं ऐ खुदा, मेरा तुझ से बस ये सवाल है
जो क़मर को तूने बना दिया, तो बनाया फिर क्यों हिलाल है
मैं निगाह उस से मिला सकूँ, कहाँ मेरी इतनी मजाल है
वो नज़र झुकाये तो क़हर है, वो नज़र मिलाये वबाल है
मेरा दिन तो फिर भी गुज़र गया, शब् ए हिज्र काटना मुहाल है
कभी उसके कूचे की याद है, कभी उसके दर का ख्याल है
सैयद सरफ़राज़ अली “सरफ़राज़”
मोबाइल न० 8959831774॥॥