राहत
राहत
था वह मुश्किलों का दौर,,
गम का भी ना था कुछ ओर,,
निरंतर सुने खामोशी में भी शोर।
अश्रुओं की निरन्तर धार…
उदासी का बढ़ता व्यापार…
आहत तन और विचलित मन
संघर्ष करता भी बढ़ते कदम।
जैसै प्यासा पानी हेतु जूझता जीवन
उस आहत को राहत मिली
दिख दूर परे भी कहीं नीर कण।
धीर धरे विपरीत बखत
दिखे सुने राहत की आहट!!!
सुखद रक्त संचार नयन तरंग
वो आहट सुकुन की किरण
उड़ती पुनः वो कटी पतंग,,,,
जीवन में आशा भरने लगी
फूल कलियां ऐसे खिलने लगे
निराशा धीरे-धीरे छंटने लगी
ईश्वर भक्ति में तन्मय रमने लगी
सत्य देर सही अंधेर नहीं कभी।
-सीमा गुप्ता अलवर राजस्थान