रास्ते का पेड़
रास्ते का पेड़
अनगिनत मुसाफिर आए
इस रास्ते से
मैं उन्हें निहारता रहता
दूर से उनके पैरों की धूल
आसमां को छूती हुई-सी
प्रतीत होती …
वे मेरी छांव में बैठ
कुछ देर विश्राम कर
फि र अपने पथ पर बढ जाते
कुछ पथिक तो ऐसे भी आये
जो आराम करने के बाद
मुझे ही नोचते-खसोटते
मेरे पास बावड़ी के
शीतल जल में प्यास बुझाते
कपड़े उतार मस्ती से नहाते
मैं देखता हूँ आज,
वास्तव में
मानव बना जानवर से जो
फिर से जानवर बनना चाहता है
तोडक़र मेरे डाल पात
सुख को भी ये पाना चाहता है।
हर जगह भभकता फिरता है
चैन नही ये पाता है।