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14 Oct 2021 · 1 min read

रास्ते और मैं

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रास्ते उज्जवल थे।
मैं भयभीत हो गया।
गरीबी के कीचड़ पैरों में लिपटे थे।

रास्ते कुचले हुए थे।
दुष्कर्मों से।
मैं चाहता था बनना मनुष्य।
दुत्कार दिया इसलिए।

रास्ते दृढ़ थे,कर्मनिष्ठ।
मेरे व्यक्तित्व के आसपास।
आशंका थी,बढ़ पाऊँगा?
भूखे पेट!
मसोस कर मन, त्याग दिया।

रास्ते ऊबड़-खाबड़ थे,गड्ढों से भरे हुए।
ठोकर खाने और गिर जाने की
संभावना ज्यादा थी।
असहाय मैं! कौन उठता उठाने ?
इसलिए छोड़ना पड़ा।

रास्ते अंधेरे से भरा हुआ था।
स्याह कालापन था पसरा हुआ।
कुछ सूझ नहीं रहा था।
मुझे रास्ता चाहिए था,
इसलिए मैंने उसे रास्ता कहा।
चलने की ललक नहीं विवशता थी।
चल पड़ा इसलिए।
कुछ पाने वाली मंजिल नहीं,लक्ष्य नहीं।
चलना ही ज्यों मंजिल और लक्ष्य थे।
अवांक्षित था पर,भविष्य तो था।
जीवन के सामने सब सहज नहीं होता।
बंदर बाँट बहुत है।
———————————————-

Language: Hindi
200 Views
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