राष्ट्र पशु शेर की दर्द भरी दास्तां
मैं कहां जंगल का राजा हूं ,
कहने भर को राष्ट्र पशु हूं ।
मेरा वर्चस्व छीन लिया गया,
मिटाकर जंगल मनुष्यों द्वारा,
मुझे बेघर कर दिया गया ।
मेरी दहाड़ में अब वो दम नही ,
सच तो यह है की अब मुझसे,
कोई डरता भी नही ।
मैं अपनी जान कैसे बचाऊं ?
या तो भूखा प्यासा अपनी गुफा में रहूं ,
वरना बाहर निकलूं तो भी मारा जायूं।
शिकारी मेरी जान के पीछे लगे रहें ,
मुझे मारकर मेरी खाल की तस्करी कर ,
धन कमाने की फिराक में रहें।
मैं अपनी सुरक्षा क्या खाक करूं ,
मैं तो सरकार पर निर्भर हूं ।
मैं बेजुबान उनसे क्या अर्ज़ करूं ।
मेरी दहाड़ में मानो दम नही ,
तो क्या मेरे मुख में पैने दांत भी नही,
मैं कैसा जंगली पशु हूं ,
मेरे पंजों में तेज नाखून भी नही ।
तो क्या अब मेरी आंखे अंगारे भी ,
बरसाती नहीं ।
हे भगवान! क्या हमारी प्रजाति के ,
इतने बुरे दिन आ गए।
माना के पुरातन समय से रहा है ,
मनुष्य हमारी जान का दुश्मन,
मगर इतने बुरे दिन पहले कभी न आए।
हम हैं अगर भारत के राष्ट्रीय पशु,
तो हमें हमारा सम्मान दिलवाओ ।
बनाकर एक सुरक्षित अभ्यारण ,
हमारे जीवन की रक्षा करो और ,
हमारी सुरक्षा और जीवन अधिकार पर,
मजबूत कानून बनवाओ।