राष्ट्र-धर्म सबसे ऊपर है
आज सारी दुनिया जब अप्रत्याशित और विषम परिस्थितियों से
जूझ रही है । देश ही नहीं अपितु समूचा विश्व जब कोरोना के कहर से उबरने में लगा है , और मानव जाति पर आए इस संकट से मुक्ति पाने के लिए नई चुनौती को स्वीकार कर नई – नई युक्तियों को खोजने में जुटा है , ऐसे में अगर कोई व्यक्ति या समुदाय विशेष इस विपत्ति को अनदेखा कर इससे मुक्ति पाने के प्रयासों को धता बता कर अपनी मनमानी पर उतारू हो जाता है तो यह मूढ़मति का ही परिचायक है । ऐसे मूढ़ और उद्दंड व्यक्ति या समुदाय को जो मानव जाति के लिए संकट का एक और कारक बनने के लिए अपनी घृणित मानसिकता को दर्शाता है ।
सहयोग के स्थान पर असहयोग करता है , उसे समाज और राष्ट्र को दंडित करना ही होगा । किसी को भी यह अधिकार नहीं दिया जा सकता कि वह राष्ट्र से ऊपर अपने और अपने धर्म को प्रतिष्ठापित करने का प्रयास करे । ऐसा ही इन दिनों तब्लीगी मरकज और जमात से नाता रखने वाले लोग कर रहे हैं । सेवा में लगे स्वास्थ्य कर्मियों से दुर्व्यवहार करना क्या किसी भी धर्म की अनुमति हो सकती है । ऐसा कदापि नहीं हो सकता बिल्कुल भी नहीं । ऐसे लोग जो अपने धर्म का ही पालन जब नहीं कर रहे हैं, तब उनसे राष्ट्र धर्म का पालन और सम्मान की अपेक्षा करना ही बेमानी है । इन जैसे उच्छृंखल लोगों से कठोरता से निपटना ही एकमात्र उपाय है , जिससे संकट काल में लगे स्वास्थ्य कर्मियों , सुरक्षा सैनिकों और अन्य लोगों के मन में विश्वास का वातावरण निर्मित होगा । यह सभी के विश्वास को अक्षुण्ण रखने के लिए आवश्यक भी है ,क्योंकि कोई भी व्यक्ति समुदाय या धर्म राष्ट्र से कदापि ऊपर नहीं हो सकता । यह सदैव स्मरण रखना चाहिए कि मानव धर्म को बनाता है , धर्म मानव को नहीं बनाता । मानव तो अपने बनाए श्रेष्ठ धर्मों का परिपालन करके ही श्रेष्ठता को प्राप्त होता है । अतः आज राष्ट्रीयता की मांग है कि ऐसे विघटनकारी शक्तियों का पूरी तरह से दमन कर लोगों में विश्वास उत्पन्न कर उन्हें और भयाक्रांत होने से बचाया जाए ।
अशोक सोनी
भिलाई ।