राष्ट्र जागरण गीत
देखिए उत्कर्ष और उत्थान का पथ गढ़ रहा हूं।
स्वर्ण पृष्ठों पर रचित है आज गाथा पढ़ रहा हूं।
देखिए मुगलों पे टूटे ये मराठी वीर हैं
देखिए निज पंथ को गोविंद गुरु गंभीर हैं।
देखकर रण भू में राणा शत्रु में कोहराम है
ये सिकंदर वध के हेतु पोरस बनाए तीर हैं
जब उजागर हो कहानी वक्ष में जागे भवानी
नेत्र में अंगार जो सोखे सदा नेत्रों से पानी।
आज भगवा ओढ़कर हां मैं फलक पर चढ़ रहा हूं।
देखिए उत्कर्ष और उत्थान का पथ गढ़ रहा हूं।
स्वर्ण पृष्ठों पर रचित है आज गाथा पढ़ रहा हूं।
प्रेम से चित व्याप्त है वीर उस चौहान का
हां कवि चंदर चले हैं पुण्य पग बलिदान का
मां वधु बहने तिलक कर वीर को है भेजती
खेलने को जान पर है बात स्वाभिमान का
रक्त से ताकत मिलेगी , दुग्ध से स्थिरता।
राखियों से प्रेरणा हां प्रेम से गंभीरता।
मित्र और बंधु को सुनाने को कहानी चाहिए
अब सघन अरिझुंड को हां हां जलानी चाहिए।
देखिए पाषाण और कंटक के पथ पर बढ़ रहा हूं।
देखिए उत्कर्ष और उत्थान का पथ गढ़ रहा हूं।
स्वर्ण पृष्ठों पर रचित है आज गाथा पढ़ रहा हूं।
कुरुक्षेत्र की काली घनेरी ,या कि वीरों की दिलेरी।
सोचिए फिर बोलिए , आपको है रास क्या?
भय रहित चेहरों कि लाली या की रण चंडी कपाली।
दृश्य है कितनी भयानक आपको आभास क्या?
चाटते हैं काल भैरव शत्रुओं के रक्त को
किंतु किंचित भय नहीं शंकर से ऊर्जित भक्त को
हिंदुओं के शीश पर मैं आज सूरज मढ रहा हूं
देखिए उत्कर्ष और उत्थान का पथ गढ़ रहा हूं।
स्वर्ण पृष्ठों पर रचित है आज गाथा पढ़ रहा हूं।
कवि दीपक झा रुद्रा