राष्ट्रवाद या विवाद
ऋतु पतझड़ सा मौसम
जड़ें कमजोर पड़ गई है
सरकारी संपत्ति छड़ रही
लोग कहते इसे राष्ट्रवाद
कलियुग कहते मान लेते.
लोग संज्ञा शून्य बहुत है.
क्या जाने वेदना अभाव.
बदल गये बिल्कुल सुभाव
खत्म हुए सबओर संवाद
बढ़ने लगे वाद विवाद.
बढ़ गये जीभ के स्वाद.
लोग कहते इसे राष्ट्रवाद.
उन्नत विकास अनायास हुआ
मोहताज फिर भी दो टूक का है
वंचित फिर भी विश्राम नींद
चैन अमन शांति सब वो की वो.
डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस